• इसे तुम कविता नहीं कह सकते

  • By: Lokesh Gulyani
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इसे तुम कविता नहीं कह सकते

By: Lokesh Gulyani
  • Summary

  • Spoken word poetry in Hindi by Lokesh Gulyani
    Copyright Lokesh Gulyani
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Episodes
  • Episode 17 - बाप का ब्रांड
    Nov 19 2024
    आज मैं अपने बाप के ब्रांड पर आ गया। एक अलग सा ही नशा मुझ पर छा गया। वो कमरे में उड़ता धुआं, शीशे से पिघलता आब, ग्लास में अपनी शक्ल इख्तियार करता हुआ, उन शामों के कहकहे एक दीवार से उड़कर दूसरी में समाने लगे।
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    4 mins
  • Episode 16 - मेरे घर के बाहर
    Nov 19 2024
    हर दस साल बाद, बीते दस साल व्यर्थ लगते हैं। और जब आने के मतलब का खुलासा होता है, समय ख़त्म हो चुका होता है।
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    3 mins
  • Episode 15 - रोटी खाना मना है
    Nov 19 2024
    खेल चलते रहना चाहिए, यही एकमात्र नियम है खेल का, ये खेल भूखे पेट का है, भूखी आंखों का है, छोटे अंगिया चोली का है, ये खेल आँखों से आँखें मिला कर मांगने का है, कुछ मिल जाने पर आपस में छीनने का है।
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