• गृह दाह - मुंशी प्रेमचंद की लिखी कहानी | Griha Daah by Munshi Premchand | How family is destroyed.

  • Oct 21 2024
  • Duración: 1 h
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गृह दाह - मुंशी प्रेमचंद की लिखी कहानी | Griha Daah by Munshi Premchand | How family is destroyed.

  • Resumen

  • गृह दाह - मुंशी प्रेमचंद की लिखी कहानी | Griha Daah by Munshi Premchand | How family is destroyed. "गृह दाह" मुंशी प्रेमचंद की एक भावपूर्ण और यथार्थवादी कहानी है, जो पारिवारिक संघर्ष, घरेलू असहमति और सामाजिक मर्यादाओं के बीच इंसानी भावनाओं को बखूबी दर्शाती है। इस कहानी में दो भाइयों के परिवारों के बीच होने वाले झगड़े और उससे उत्पन्न तनावों का गहरा चित्रण किया गया है। प्रेमचंद की यह कृति, समाज और पारिवारिक संबंधों की जटिलताओं पर एक सशक्त टिप्पणी के रूप में उभरती है। 🔸 कहानी का नाम: गृह दाह 🔸 लेखक: मुंशी प्रेमचंद 🔸 शैली: सामाजिक, पारिवारिक 🔸 मुख्य विषय: घरेलू कलह, पारिवारिक तनाव, सामाजिक बंधन 🔸 मुख्य पात्र: दो भाई और उनके परिवार 🌟 कहानी के मुख्य बिंदु: • घरेलू जीवन के संघर्षों का सजीव चित्रण • पारिवारिक रिश्तों की जटिलताएँ • संपत्ति और समाज के दबाव के कारण रिश्तों में आई दरार • प्रेमचंद का गहन समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण इस कहानी में प्रेमचंद ने पारिवारिक और सामाजिक मुद्दों को उजागर किया है, जिनका सामना कई परिवार आज भी कर रहे हैं। रिश्तों में अविश्वास, ईर्ष्या और संपत्ति के विवाद किस तरह घरेलू शांति को भंग कर सकते हैं, इसका प्रभावी चित्रण इस रचना में मिलता है। "गृह दाह" प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियों में से एक है, जो आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी अपने समय में थी। मुंशी प्रेमचंद और उनका योगदान मुंशी प्रेमचंद (1880-1936) हिंदी और उर्दू साहित्य के महान लेखक थे। उनका असली नाम धनपत राय श्रीवास्तव था, लेकिन वे प्रेमचंद के नाम से विख्यात हुए। उनका जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के निकट लमही गाँव में हुआ था। प्रेमचंद ने अपनी कहानियों और उपन्यासों के माध्यम से समाज के विभिन्न वर्गों की समस्याओं और संघर्षों को प्रकट किया। प्रेमचंद की प्रमुख कृतियों में 'गोदान', 'गबन', 'निर्मला', 'सेवासदन', 'रंगभूमि' और 'कफन' शामिल हैं। उनका साहित्य समाज के निम्न और मध्यम वर्ग की जीवंत तस्वीर पेश करता है, और सामाजिक न्याय, नैतिकता, तथा मानवीय मूल्यों का पक्षधर है। प्रेमचंद की सरल भाषा, मार्मिक शैली, और यथार्थवादी दृष्टिकोण ने हिंदी साहित्य को एक नई दिशा दी और इसे जनसाधारण के करीब लाया। 8 अक्टूबर 1936 को उनका निधन हो गया, लेकिन उनका साहित्य आज भी प्रेरणादायक और हिंदी साहित्य का एक ...
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